Due to some technical problems, this post has been republished....kindly read this one and vote.....
आओ सुनाऊँ तुम्हे कहानी दामोदर और प्रीती की,
जो रहते तो थे साथ साथ पर फिर भी थे अंजानो से,
शुरुआत वहां से करते है जब दोनों इक दूजे से मिले,
फिर क्या था मन ही मन में अनेकों प्यार के फूल खिले,
किया फैसला दोनों ने इक दूज के संग रहने का,
और नाम दिया इस रिश्ते को जो कहलाया पवित्र रिश्ता,
शादी के बंधन में बंधकर किया था दोनों ने इक वादा,
हर हाल में साथ निभाने का, रिश्तों को संजोकर रखने का,
वो दोनों इक दूजे से प्यार बेपनाह करते थे,
और संग संग रहने के बस मौक़े ढूँढा करते थे,
ऐसे ही बीते थे कुछ दिन, महीने और कुछ साल,
देखे थे दोनों ने मिलकर ज़िन्दगी के उतार चड़ाव,
इन तेरह सालों में दोनों थे दिया और बाती जैसे,
दो हंसों के जोड़े जैसे साथ वो हरदम रहते ऐसे,
इक दिन दामोदर प्रीती से कुछ कहने घर जल्दी आया,
और प्रीती को लगा की वो उसके लिए तोहफा लाया,
कहा दामोदर ने प्रीती से कहना चाहूँ तुमसे इक बात,
अब तक जो न कही थी मैंने और नहीं है तुमको ज्ञात,
भोलेपन में बोली प्रीती जानू तुम्हे जो बात है कहनी,
मैं भी देना चाहूँ तुमको हमारे प्यार की इक निशानी,
तब दामोदर ने गुस्से से कहा तुम सुन लो मेरी बात,
और बताई प्रीती को काजल से हुई थी मुलाकात,
नहीं समझ पाया मैं खुदको क्यूँ ऐसे खिंचता गया,
जैसे कहीं ढूँढा करता था हर वक़्त मैं उसका ही साया,
प्यार नहीं मैं अब करता हूँ तुमसे सुनलो प्रीती आज,
चाहूं मैं अब घर बसाना सिर्फ और सिर्फ काजल के साथ,
लिखा है सबकुछ मैंने तो इस कागज़ में तुम्हारे नाम,
अलग मुझसे होकर आएगा जो बहुत तुम्हारे काम,
सुनकर यह सब दामोदर से प्रीती रह गयी निशब्द,
समझ नहीं पा रही थी कुछ भी और खड़ी थी वहीं स्तभ्द,
पूछना चाहती थी दामोदर से मन में जो थे सवाल उट्ठे,
पर पलकें भिगोये समेटती रही वह दिल के टूटे हुए टुकड़े,
इससे पहले वो कुछ कहती दामोदर ने कागज़ था दिया,
शादी की सालगिरह पे जो प्रीती ने था कबूल किया,
खोलके देखा जब प्रीती ने था वह दोनों का तलाकनामा,
जो दामोदर ने चाहा था उससे दस्तखत करवाना,
कुछ न कहा बस प्रीती उठ कर गयी अपने कमरे में अन्दर,
खुद को नहीं दिखा पाई कमज़ोर की था सामने दामोदर,
कई घंटे थे बीते और प्रीती जब कमरे से बाहर आई,
देख के दामोदर को उसने शर्त यह अपनी भी सुनाई,
कहा प्रीती ने दामोदर से मंज़ूर मुझे है यह तलाक,
सिर्फ चाहूं मैं कुछ पल कुछ दिन जो बिताओ तुम सिर्फ मेरे साथ,
दामोदर गया मान ये शर्त जो प्रीती ने रक्खी थी,
सोचा इतना तो कर सकता हूँ प्रीती जो मेरे साथ रही,
जब दामोदर ने काजल से कही प्रीती की शर्त वाली बात,
नहीं समझ पाई काजल और कहने लगी यह तो है इक चाल,
चाहे प्रीती तुमको बांधना अनचाहे शादी के बंधन में,
और चल रही है यह चाल जिससे तुम सिर्फ रहो उसके शिकंजे में,
फिर भी दामोदर ने मानी प्रीती की यह अटपटी सी शर्त,
और गया वह घर प्रीती के पास जिसने रख्खा था उपवास,
देखा जब उसने प्रीती को तो बहुत बुझी सी लग रही थी,
जैसे मानो खुद ही अपने दिल से वो जूझ रही थी,
उस रात जब दामोदर कमरे में अपने था सोने गया,
देख के प्रीती को कुछ लिखते वह हैरान सा रह गया,
सोच रहा था मन ही मन क्यूँ प्रीती ने कुछ न कहा,
और अजीब सी शर्त है रखी हासिल उसे इससे होगा क्या,
सुबह उठकर प्रीती ने दामोदर का मनपसंद नाश्ता बनाया,
और बैठ कर दोनों ने ही रोज़ की तरह इक साथ किया,
ऐसे ही हर रोज़ वह बिताते थे वक़्त इक दूजे के साथ,
और दामोदर को याद आ रहा था वह शादी का गुज़रा साल,
आज जब उसने प्रीती को देखा तो दिखाई पड़े सफ़ेद बाल,
याद आया उसको हर लम्हा और हर पुराने बिगड़े हुए हाल,
उस वक़्त सिर्फ प्रीती थी जो साथ उसके थे हुई खड़ी,
न था कोई रिश्ता अपना जब ज़िन्दगी की मार पड़ी,
इतने सालों ने किया था प्रीती को थोडा सा बूढा,
फिर भी उसने कभी नहीं किया था दामोदर को खुद से जुदा,
हर रोज़ प्रीती दामोदर के आने का करती थी इंतज़ार,
यही थी उसके जीवन की पूँजी और ज़िन्दगी का पूरा सार,
धीरे धीरे दामोदर को एहसास हुआ प्रीती थी ख़ास,
प्यार था उसको सिर्फ प्रीती से बाकी सब रिश्ता था बकवास,
उसी वक़्त दामोदर ने काजल से मिलने का फैसला किया,
रहना चाहता था प्रीती के संग पक्का अपना मन था किया,
जब उसने काजल से कहा रहना चाहे वह प्रीती संग,
काजल ने उसके मुंह पर ही किया था दरवाज़ा बंद,
खुश था बहुत दामोदर और लिए उसने खूब सारे फूल,
प्रण ये किया न होगी अब कभी ज़िन्दगी में ये भूल,
जिसके साथ बिताये थे वह तेरह साल जो बीत गए,
कैसे मैं भूला जो वादे मैंने प्रीती संग थे लिए,
किये थे सारे वादे पूरे सिर्फ और सिर्फ प्रीती ने,
कितने सारे दुःख थे दिए जाने अनजाने उसको मैंने,
जैसे ही पहुंचा था वो घर न दिखाई पड़ी उसको प्रीती,
और पुकारा नाम उसका जो सिर्फ थी उसके लिए जीती,
पहुंचा जब वो उस कमरे में जहाँ प्रीती थी बिस्तर पर सोयी,
देख के था वो निशब्द जब उसने सबसे कीमती चीज़ थी खोई,
किया था प्रीती ने खुद को ख़त्म देख के दामोदर को जाते,
समझा था कभी न आएगा दामोदर उसके पास लोट के,
दामोदर का सब कुछ बिखरा सामने बस इक पल में था,
क्या कीमत उसने चुकाई अपना दिल जो लगाया था,
क्यूँ नहीं समझ पाया वो पहले प्यार होता है अपनापन,
जो मिलता है सिर्फ साथी से जिसने देखे संग जीवन के रंग,
सोचो तुम भी कभी इक छोट्टी सी मेरी कही हुई बात को,
जीवनसाथी ही होता है जो हरपाल साथ निभाता है,
चाहे वो हरदम तुमसे न बोले प्यार की भाषा को,
पर होता है वो ही सच्चा साथी जो दिखलाये आइना तुमको,