पहले तो मन घबराया था, फिर माँ ने मुझे समझाया था,
कहकर की यह मेरा अपना है, और मैं भी उसका सपना हूँ,
हर दिन वह मुझसे बातें करता, दिखलाता दुनिया के रंग,
सिखलाता प्यारी बातें और समझाता दुनिया के ढंग,
करता वह मेरा इंतज़ार, इस दुनिया में आने का,
और देता मुझको विश्वास, वह हर पल साथ निभाने का,
जब आया मैं इस दुनिया में, मुझको गले से लगाया था,
उसकी गोद में मैंने खुद को सुरक्षित ही पाया था,
जो वादा उसने किया था कभी, हर हाल में उसे निभाया है,
हर पल रख्खा है मेरा ख्याल, माँ का भी साथ निभाया है,
माँ सिखलाती है मैं क्या हूँ, वह सिखलाता क्या बनना है,
माँ के साथ वह भी चाहे बनाना मुझे एक बेहतर इंसान,
कभी मेरी शरारत पर डांटे, फिर खुद ही आके मनाता है,
ऊपर से दिखता है सख्त, अन्दर से बिलकुल मुलायम है,
जैसे जैसे मैं हुआ बड़ा, वह दोस्त मेरा बनता गया,
सही गलत की वह पहचान इस तरह मुझे कराता गया,
परिवार को एक माला की तरह जैसे वह धागे में पिरोये रख्खे,
वैसे ही सिखाये मुझे उड़ना, आसमान की ऊंचाईयों को छूना,
सब कहते हैं उसे आदमी आम, पर मेरे लिए वह तो है ख़ास,
अब बन चुकी है मेरी पहचान, वह एक अनजानी सी आवाज़,
मिलना चाहोगे उससे तुम, जो मेरे दिल में है रहता,
वह और नहीं है कोई दोस्तों, वह ही तो है मेरा पिता.
This poem is dedicated to all you Father's.....on Father's Day.
I have written this for my father and also for a contest in BlogAdda.
Please vote for me if you like what u saw and read.
The sketch is made on an A4 size paper....from a picture http://i53.photobucket.com/albums/g71/FayStarr/avatars%20gifs/Davidb_wbaby.jpg
stay fit and stay healthy!!
very touching
ReplyDeleteBeautiful! Extremely beautiful:). Your Dad must be so proud reading this tribute!
ReplyDeleteThank you so much. Actually he liked it and first time commented on my poem on Facebook. I was so happy. That was the best gift he gave me.....
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