Sunday, 11 April 2010

ये pal


जो बीत गया वो तो कल था,
जो आएगा वो भी कल है,
पर आज जो पल हैं जीवन में,
उसे यूँ ही तो न जाने दो।


जब ये पल कल बन जायेंगे,
और यूँ ही हमें याद आयेंगे,
तो उस पल के याद आते ही,
तुम यूँ ही तो पछताना न।


क्या क्या कर सकते थे उस पल,
पर यूँ ही हमने जाने दिए,
जैसे रेत हाथ से फिसल जाए,
वैसे ही पल बन जाते कल।


क्यूँ व्यस्त हैं हम इस जीवन में,
करते रहते हैं भाग-दौड़,
कोशिश भी नहीं करते हैं हम,
नहीं मिलता क्यूँ न हमें वो मोड़,
जहाँ एक एहसास ही काफी है,
उस कल को इस पल जीने में,
पर ये पल जब भी आते हैं,
हम महसूस नहीं कर पाते हैं,
और दबे पाँव वो जाते हैं,
फिर कल वो पल कहलाते हैं।


This sketch is done on a high quality drawing paper (watercolor paper).
Wanted to paint it first but I am happy with the result. I know I have to improve a lot but I just couldn't wait to share with you all.
These words came to me so easily as someone was telling me to write.


I hope you all like it.
Cheers!!!

4 comments:

  1. Excellent painting - it has a very "calming" effect.....the poem is lovely, telling us to enjoy our present and remain cool and composed in all situations and be Happy!

    Great going....

    ReplyDelete
  2. Thank you. Also visit www.thesuzcorner.blogspot.com

    ReplyDelete

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